अगर मेरी रूह तुझसे मिल गई —
किसी मौन की गहराई में,
जहाँ शब्द
अपनी ही परछाईं से डरते हैं…
तो मैं
तुझे क्या मुँह दिखाऊँगा?
क्या कहूँगा
उस प्रेम को
जिसने मुझे जीवन की शक्ल में भेजा —
कि मैं वह जीवन
तेरे इंतज़ार में नहीं,
तेरी भूल में जीता रहा?
तेरे हाथ से छूटकर
जो साँसें मेरे भीतर पहुँचीं थीं,
मैंने उन्हें
बाज़ार की आवाज़ों में खर्च कर दिया।
मैंने तेरे दिए हुए पल
किसी और की तालियों में बाँट दिए —
और जब मेरी आत्मा रोई,
तो मैंने उसे
शब्दों में सजा कर
कविता बना दिया।
तू पूछेगा —
“क्या पाया?”
और मैं चुप हो जाऊँगा।
क्योंकि जो पाया —
वो तेरा नहीं था,
और जो तेरा था —
उसे मैंने कभी छुआ ही नहीं।
मैंने
तेरी ओर खुलने वाला हर द्वार
अपने ही संकोच से बंद कर दिया,
और अब
जब द्वार तेरी ओर खुला —
मैं अपने ही अपराधों की परछाईं में
एक अजनबी सा
तेरी देहरी पर खड़ा हूँ।
क्या तू फिर भी बाँहें फैलाएगा?
क्या तेरे कान
मेरे मौन को सुन पाएँगे?
क्या प्रेम में
इतनी जगह होती है
कि हम अपने अपराध भी उसमें डुबो सकें?
अगर मेरी रूह तुझसे मिल गई —
तो मैं
प्रार्थना नहीं करूँगा,
मुक्ति नहीं माँगूंगा —
बस इतना चाहूँगा
कि एक क्षण
तेरी आँखों में छुप जाऊँ…
बिना किसी नाम,
बिना किसी प्रश्न,
बिना किसी उत्तर के।
-इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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