अब मेरे पलों में ना अंधेरे की सतह है,
ना रोशन सी कोई हल्की सी समां है।
ना उजाले की बिंदिया तेरे माथे से मुझे चमक दे रही है,
रही बात ये मेरा सफ़र नहीं है।
मैं मुड़ जाऊँ, समझो ये मेरा सफ़र नहीं है,
कोई भी चले मेरे बाद इन राहों में मेरा असर भी नहीं है।
चेहरे पर मिले तेरे धूल के कण,
ये छिपते रहें, मेरी एक नज़र से पहले।
सोच कर तो आया था कि मेरा ज़हन यहीं इधर ही किधर है,
पर आँखों में कहानी तेरी जुबानी सिमटी रूहानी।
कागज में ना इसका जिक्र है, ना कोई खबर है,
तू जिधर है, जहां जिंदा उजाला।
मैं चलता रहा कदम पूछते रहे,
क्या हुआ तू उसका हमसफ़र भी नहीं है,
क्या है ऐसा कि तेरा राहों में सफर भी नहीं है,
फिर चलके कहां तक चले,
किस सफ़र को किस सफ़र से बदलें,
कदम हूं मैं तू बस चलता है,
मेरे निशानों पर कोई क्यों कदम रखता है, तब मेरा भी ये सफर भी नहीं है,
तू जहां जाए तू चल,
कदम बदल दे,
ये कदम भी अब तेरे नहीं है,
तेरा मेरा भी सफ़र नहीं है।।
- ललित दाधीच।।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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