मुश्किलों भरा एरा (युग) है ,
कहीं दु:खों का डेरा है,
बीमारियों ने भी घेरा है l
किसी के साईकिल तक नहीं,
तो किसी के पास टवेरा है,
कहीं खुशियों का सवेरा है ,
कहीं चिंताओं का बसेरा है,
तो कहीं छा गया अंधेरा ही अंधेरा है l
कोई बना मालिक तो कोई बना चेरा है,
शादी में हुईरिया फेरा है,
कोई उगाड़ा फरिरिया,
तो कोई काड़रिया छेड़ा है l
अब महँगाई का भी फेरा है,
दिख रहा सब टेड़ा ही टेड़ा है,
साँप नहीं फिर भी बीन बजारिया सपेरा है l
कोई किसी के लिये नहीं ठेरा है,
कोई बना गुंगा,तो कोई बन गया बेरा है,
कोई घणा समझदार तो कोई नत्थु गेरा है,
सब जगह कचरे का ढेरा ही ढेरा है l
कोई देरा है ,कोई लेरा है,
कोई करवारिया जल्दबाजी,
तो कोई कररिया देरा है,
सबको दिख रहा सुनेरा ही सुनेरा है,
कोई ख़ुद को समझ रहा बब्बर शेरा है l
कोई चुप रेरा है,
तो कोई कुछ न कुछ केरा है ,
तो कोई कुछ तो भी केरा है l
तो मैं क्यों पीछे रहूँ,
जब सारा समुंदर मेरा है l
-अमित सोलंकी