शशांक शीतल छाँव-सी जो, कोख में स्वप्न संजोती है।
वह माँ करुणा-स्रोत समान, हर पीड़ा चुपचाप पीती है॥
नयनों में दीप जलाती जो, पग-पग मंगल गायन हो।
पलकों पर नींदें धरती जो, आँचल-शीतल छाजन हो॥
लोरी के स्वर-तारों से, जो राग रचाया करती है।
साँसों में स्नेह समेटे, जो हर श्वास चढ़ाया करती है॥
माटी से मोती सीखा, उस माँ ने मन संवार दिया।
छालों पर चूम के हर दाह, मुस्कानें उपहार दिया॥
कण-कण में करुणा रचती, रोटी में रस बरसाया।
स्वयं अधपेट रही, पर तुझको पूरक अन्न खिलाया॥
पर अब तू शब्द बिखेर रहा, जो वज्र से भारी होते हैं।
तेरी बातों में काँटे हैं, जो माँ की छाती चीरें हैं॥
उस देह से जो जन्मा है, अब शूल उगा उस देह पे तू।
जिस गोद में तू खेला था, अब घात करे उस नेह पे तू॥
वो चरण धोए जल से, अब तू स्वर में शूल सजाता है।
माँ की ममता को व्यापारों की तुला पे तोल दिखाता है॥
निष्कंप हुई जो पीड़ा में, अब आँसू भी छुपाती है।
मौनों में माँ की वेदना, संतान नहीं पढ़ पाती है॥
हे वत्स, ममता को मत तोल, ये भाव न तुला पे आते हैं।
तू हार नहीं माँ से सकता, ये नेह न दाम चुकाते हैं॥
वो द्वार तुझे पुकार रहा, तू लौट अगर संतान है।
वो हृदय नहीं अभिशाप तुझे, माँ आज भी पहचान है॥
तेरा हर दोष स्वाहा कर दे, माँ की ममता यज्ञज्वला।
अपवादों में भी सच्चा है, माँ का मन — वह दिव्य कला॥
नूतन प्रजापति
स्वरचित
बड़ागाँव मध्यप्रदेश

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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