भावुक मन उलझ गया।
उसके तोहफे में अटक गया।
जिंदगी की जरूरते बढ़ी,
तभी वो सामने प्रकट हुआ।
दिल बल्लियों उछलने लगा,
होंठो ने प्यार का स्वाद चखा।
प्यार का कोई तजुर्बा न था,
जो मिला जन्नत का नूर रहा।
अब घर और बाहर संभालती,
इंतजार पल पल लगता भारी।
खिले फूल भी कुमलाने लगे,
जिम्मेदारी का बोझ बढ़ गया।
यही जीवन का सार 'उपदेश',
उम्र बढ़ते प्यार महान हो गया।
- उपदेश कुमार शाक्य वार 'उपदेश'
गाजियाबाद