माना कि आईना झूठ नहीं बोलता,
पर पूरा सच भी वो नहीं बतलाता।
बाह्य स्वरूप का प्रतिबिंब दिखाता,
पर आंतरिक पीड़ा को नहीं बताता।
मुस्करा दो, तो वो भी है मुस्कराता,
हर्ष और विषाद को कहाँ पहचानता।
काश! आईने और नज़र में हो खूबी,
दिखाए वही, जिसे आदमी छिपाता।
🖊️सुभाष कुमार यादव