रुखसार तेरे होठों की
अंगार से कम नहीं है ।
आँखों की मस्ती चुलबुली सी
मृगनयनी तू बड़ी
हसी है।
तारीफ़ करूं क्या तेरी
तू अल्लाह की नायब
कारीगरी है।
तू सुंदर इस क़दर की
हूर भी तुझसी नहीं है..
रूखसार तेरे होठों की
अंगार से कम नहीं है..
तू स्वर्ण से भी कुंदन
खुशबू तेरी चंदन
तू हीं रंभा तू हीं मेनका
तू लगती स्वर्गलोक की
की परी है..
रुखसार तेरे होठों की
अंगार से कम नहीं है...
तू शाम सुबह तू दिन भी है
चेहरे की नूर तू चमक भी है
दर्शन तेरा दिल को खुश
कर देता
लगती कोई देवी है
तू पवन चरित्र चितवन
तू गर्मी में सावन जैसी है
कैसे समझाऊं अब तुझको
तू कितनी ज़रूरी है
बिन तेरे जीना
बस मज़बूरी सी है
रूखसार तेरे होठों की
अंगार से कम नहीं है...
अंगार से कम नहीं है...