सपनों की क्या हक़ीक़त है
बंद आंखों में सबकुछ है
जो खुली आँखें तो सब फुर्र है।
उस ऊपर वाले ने क्या खिलौना दिया,
सपनों में सबको मनचाहा पद दिया।
किसी से कोई भेद भाव नहीं
सबको सबकुछ भर भर कर दिया।
जो पा ना सको तो सपने में पा लो
जिसको चाहो जब चाहो
जिसको भी जिधर बुलाओ
सब चुप चाप चलें आते हैं।
सपने में कोई राजा तो कोई
भिखारी बनते हैं।
है सपनों की एक अलग हीं दुनियां
सपने सबको अच्छे लगतें हैं।
ये सपने हमें जिंदगी की ट्रेलर दिखतें हैं
बहुत कम हीं इस ट्रेलर की पूरी
कहानी लिख पाते हैं और
सपनों को हक़ीक़त में जी पाते हैं..
मत भूलिए जनाब ये सपने हीं
आदमी को उद्वेलित उन्मेषित करतें हैं
अविष्कार के जनक होते हैं।
तरक्की विकास के नए नए आयामों को
तराशतें हैं।
हैं ये सपने जो आदमी को आदमी बनातें हैं
कुछ नया करने की इच्छाशक्ति जगातें हैं..
इसलिए मैं कहता हूं यारों कि सपने बुलबुले नहीं हक़ीक़त होते हैं..
सपने हक़ीक़त होते हैं...