मुस्कुराना भूल न जाऊँ,
उससे पहले लौट आना तुम।
रिश्ता रूह का कहते थे,
प्रतीक्षा और न बढ़ाना तुम।
मेरे जेहन में सवाल उठ रहे,
उत्तर बनकर आना तुम।
दे न पाओगे जबाव जब कभी,
मेरे नखरे उठाना तुम।
तुम्हारे हिस्से का वक्त बाकी,
करीब बैठकर बतियाना तुम।
चुप्पी को तोड़ो आकर मेरी,
भावनाओं को सहलाना तुम।
इतना सब्र मुझमें पहले नही था,
वक्त सिखाया और न रुलाना तुम।
मेरी हिम्मत को देखो 'उपदेश',
तमाम रातों का कर्ज चुकाना तुम।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद