ढलती हुई उमर याददाश्त का आकाश।
तुम्हारी तस्वीर से निकलता नूरी प्रकाश।।
चंद खुशियाँ थामे रहे जाने कब से हम।
आज भी मुट्ठी में बन्द वही पुरानी प्यास।।
चल जिन्दगी और कुछ यादें ताजा करे।
तुम कहो कुछ मै कहूँ चुन चुन कर खास।।
ख्वाहिशो को दफना दिया मैंने 'उपदेश'।
बस तुम्हीं बची और बची नहीं कोई आस।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद