ज़मीर पर बहुत नाज़ करते थे वो।
शबाब देख मन डोला दबाव में वो।।
ज़मीर मरती ना सुनी इन कानो से।
मरता हर वक्त इंसाँ हाव-भाव में वो।।
ज़मीर का भाव तो होगा कौन जाने।
देखा नही बाजार किसी तनाव में वो।।
पसन्द की बात हुई अच्छी लगी मुझे।
सुनने वालों में कौन एक मैं और वो।।
पिला दिया सीमा से ज्यादा जब उसे।
डूबा गया 'उपदेश' रंगीन ख्वाब में वो।।
बिक गई अस्मत भाव कुछ भी रहा हो।
रिश्ता कायम से सब खुश चाव में वो।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद