कहाँ आ गए हर तरफ रेत ही रेत फैली।
आँख खुल नही रही रेत आँखों मे फैली।।
रेत सुखी उड़ रही जिधर की हवा चलती।
बिना पानी के प्यासी रेत दूर दूर तक फैली।।
दिल वालों की किस्मत रेत की तरह होती।
चाह बेताब 'उपदेश' तन्हाई हर ओर फैली।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद