कह दो, हर रिश्ते का दम घुट रहा।
दौड़ते खून में, सच प्यार मिट रहा।।
यदि सबको एकाकी जीवन पसन्द।
संयुक्त परिवार का चलन मिट रहा।।
जो चाहो मिनटों में हाजिर हो जाता।
लो घर के खाने का स्वाद मिट रहा।।
ले डूबेगा मॉल खुदरा कारोबार को।
ऑनलाइन से छोटा व्यापार मिट रहा।।
खून के रिश्तों में कुरुक्षेत्र सा चलता।
चालाकी से 'उपदेश' संसार मिट रहा।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद