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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

एक दिन एकान्त में - ताज मोहम्मद

एक दिन एकान्त में,
बैठा था मैं कुछ चिंतन में,
सब कुछ शांत था।
पर मन मेरा कुछ अशांत था।।

अचानक स्मृति...
बचपन की याद आयी!!
मेरे ओठों पर यूँ ही...
इक मुश्कान छाई!!
वो बेफिक्री का होना,,,
दिन भर मित्रों संग घूमना!!

सब कुछ मूझे याद है,
क्या तुम्हें भी सब याद है?...
वो गाँव के किसान चाचा के,,,
खेतों में चुपके से घुसना!!
फिर ककड़ी,खीरे,मूली,गाजर...
चुरा कर खाना!!
वो दोस्तों के संग,
धान के पैरे की खरही में,
सिनेमा के जैसे झूठ का लड़ना!!
वो जामुन के पेड़ पर चढ़कर,
डाली का हिलाना!!
नीचे खड़े दोस्तों का,
अच्छे जामुनों का बीनना।

सब कुछ मुझे याद है,
क्या तुम्हें भी सब याद है?...
वो ईंट से ईमली कैथों का तोड़ना!!
वो छोटू का इन पर पत्थर का,
सटीक निशाना लगाना!!
गन्ने का चुराकर,
दूर कहीं खेतों में खाना!!
वो अमरूद की बाग़ से,
चोरी करके दोपहर में भागना!!

सब कुछ मुझे याद है,
क्या तुम्हें भी सब याद है?...
वो चोरी चोरी,
कांच के कंचे खेलना!!
चाचा के आने पर,
कंचे को वहीं छोड़कर भागना!!
वो लट्टू का हाथ की हथेली पर,
बार बार नाचना!!
हर दूसरे दिन इसकी,
लत्ती का टूटना!!
वो खोखो, पाक पकिल्लो,
ऊंचा ग्लास नीचा ग्लास खेलना!!
वो आँखों को बंद करके,
आईस पाइस खेलना!!
वो गुल्ली डंडे का,
रोज ही मैदान में खेलना!!

सब कुछ मुझे याद है,
क्या तुम्हें भी सब याद है?...
वो छोटे भाई के माथे पर,
अम्मा का नजर के दो काले,
गोल टीके लगाना!!
वो खेलकर आने पर,
पैरो को खुरदरी ईंटों पर,
रगड़ कर धोना!!
बेवजह ही आईने के सामने,
बार बार बालों को कंघे से झाड़ना!!

सब कुछ मुझे याद है,
क्या तुम्हें भी सब याद है?...
वो नहरों, तालाबों में,
चुपके से बिना कपड़ों के नहाना!!
फिर डरते डरते,
अपने घर को जाना!!
बेवजह मार से बचने के लिए,
इधर उधर की करना!!
अम्मा के पीटने पर,
वो प्यारी दादी का उन पर चिल्लाना!!
दादा जी की साइकिल पर,
आगे डंडे पर बैठकर बाजार का जाना!!

सब कुछ मुझे याद है,
क्या तुम्हें भी सब याद है?...
वो अम्मा का चूल्हे पर,
खाना बनाना!!
फिर सबको एक साथ बैठाकर,
दादी का भोजन परोसना!!
खा पीकर जल्दी ही,
बिस्तर पर चले जाना!!
वो दादा दादी की राजा रानियों की, कहानी का सुनते सुनते सो जाना!!
हर सुबह पिताजी का,
उठने के लिए चिल्लाना!!
वो बेमन बेमन स्कूल के लिए,
हमारा तैयार होना!!

सब कुछ मुझे याद है,
क्या तुम्हें भी सब याद है?...
वो हर ही साल जून के महीने में,
नानी के घर पर जाना!!
नाना, मामा के प्रेम में,
पूरा महीना बिताना!!
पिताजी के बिना डर के,
सुबह से शाम तक खेलना!!
अम्मा के ग़ुस्साने पर नानी का,
उन पर हमारे लिए चिल्लाना!!
ना जाने कब पूरे महीने का,
इतनी जल्दी बीत जाना!!
बुझे हुए मन से फिर एक दिन,
अपने घर आना!!

सब कुछ मुझे याद है,
क्या तुम्हें भी सब याद है?...
सोचते सोचते मेरी नज़र,
अचानक हाथ की घड़ी पर पड़ी!!
ना जाने कब,
वह दो घंटे तक थी चली!!
दिमाग पर जोर देकर,
अपने सर को झटका!!
फिर थोड़ा मुश्कुरा कर,
अपने घर को चला!!

ताज मोहम्मद
लखनऊ




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Khajaana luta diya shriman aapne

ताज मोहम्मद replied

मेरी रचना पर कमेंट करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया भाई जी।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वो ईंट से कैथों का तोड़ना!! Yaad hai Isme se lagbhag sab yad hai bas kahin chhip gaya tha aapne revision karwa diya us anmol khajaane ka

ताज मोहम्मद replied

आपका बहुत बहुत शुक्रिया भाई जी।

Raghav said

waah!! kya baat hai!! dil jeet liya bahut khoob

ताज मोहम्मद replied

बस आप लोगों का प्यार है। शुक्रिया।

Vineet Garg said

Bahut khoob 👏👏

ताज मोहम्मद replied

बहुत बहुत शुक्रिया जनाब।

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