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दिल के जख्मों को उनसे हम छुपाते रहे
आंख नम थी मगर हम, मुस्कुराते रहे
अजीब दास्तां है ये मोहब्बत की यारो
वो रूठते रहे हर बार हम मनाते रहे
बहुत उदास था दिल, उनके जाने पर
वो लौट कर नहीं आए हम बुलाते रहे
ताजा हैं अभी दिल पे मोहब्बत के निशां
वो हँसी-खुशी में भी हमें रुलाते रहे
वो देते रहे हैं हम को रोज जख्म नए
यूं दिल के जख्मों को हम सहलाते रहे
जिसकी चाहत में हमने खुद को भुला दिया
उनकी यादों को हम यूं गले लगाते रहे
ए घङी वक्त की जरा सम्भल कर चल
कहीं बुला ले न मुझे वो दूर जाते हुए
जब छोङ कर हमें वो हो गए थे पराए
हम इश्क के हमाम में तब नहाते रहे
अब तुम भी उन को भूल जाओ यादव
वो चले गए नजरों से नजर मिलाते हुए
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है