रघुवंश के भूषण राम लला,
अयोध्या धाम विराज रहे,
अवध पुरी के सबै नर नारि,
लोचन लाभ लूटि रहे,
भाल पे बालन की घुंघरारी,
लटे लटके जब,
जानो मत्त मधुप कमल नयन के
दरसन को तरसाय रहे,
हंसि हंसि के कछु बतियात जात,
फूलन के झरना झरत जात,
दंत की पाँति लगे पैसे,
मोतिन की लड़ी जड़ी जैसे,
श्याम वर्ण बापे पीत झिगुलिया,
गल मोतियन की माल सुहाय रहे,
खिलौनन के बीच बैठ,
जब झुनझुन बजाय रहे,
लागि रहयो जैसे साधना को,
साधक पुकार रहे,
रघुवंश के भूषण राम लला,
लैके धनुवीण खेल रहे,
निर्बल के बल राम बने,
तब निर्भीक हमें बनाय रहे,
मात कौशल्या भाल चूमि,
बारम्बार दुलराय रहे,
आगे आगे रम लला भागें,
पद पंकज धूल उड़ाय रहे,
सुर मुनि के धन्य भाग,
माथे पे धूरि लगाय रहे,
आतुर व्याकुल राउर पाछे-पाछे,
गहि के बाँह गोद बैठाय रहे,
बिलोकि-बिलोकि मनोहर छवि,
जंग की सबै निधि लूट रहे,
राम भक्त सब ठाड़े ठगे से,
जय श्री राम पुकारि रहे,
जय श्री राम पुकारि रहे।
----सुधा भटनागर