आँसू पीकर भी मुस्कराहट बिखेरती।
वो प्रेम में जलती पर राख नही होती।।
खुद को मिटाकर अपनों को संवारती।
गंगा जैसी बहती शिकायत नही करती।।
तीर्थ की तरह रहकर पाप मुक्त करती।
मगर स्वयं कभी भी मुक्ति नही पाती।।
कपड़ा रंग छोड़े शरीर से उतार फैको।
मोहब्बत का रंग मन से उतरने नही देती।।
प्रियतम की आँखों में उदासी 'उपदेश'।
सब कुछ मंजूर उदास देख नही सकती।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद