हवा का रुख रहा होगा,
उसकी वज़ह से खुशबू आई।
वर्ना सफर इतना किया हमने,
खुशबू पास तक नही आई।।
तन्हा बैठे थे कमरें में,
याद आते ही चाय की खुशबू आई।
यही सोचकर "उपदेश' भावुक,
चाहत रही मगर खुशबू नही आई।।
हल्की-फुल्की बरसा हुई,
तब कहीँ मिट्टी की खुशबू आई।
अपना घर अपना न रहा,
सफर से लौट कर खुशबू नही आई।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद