सिर्फ होंठों का बंद होना कहाँ का चुप रहना,
कुछ न कहना भी तो है बहुत कुछ कहना।
झुकी पलकें, लब खामोश ये सब इशारे हैं,
जो लफ़्ज़ों से बयाँ न हो इशारों से समझना।
ख़ामोशी कितना कुछ कहती है कभी सुनना,
बताती है किसी से बिछड़ने का दर्द कैसे सहना।
ये जो मेरी आँखों में तुम्हारी यादों के मोती हैं,
क्या कोई दे सकता है इससे बेशकीमती गहना।
चाहत की चाहत भी क्या चाहत होती है,
हर किसी के नसीब में नहीं होता ऐसा चाहना।
🖊️सुभाष कुमार यादव