प्रेम का सौंदर्य न रूप में बसता है,
ना आँखों की चमक में रमता है।
वो तो मन की अनकही गहराई में,
मौन की भाषा में बहता है।
ना हार में, ना श्रृंगार में,
ना ही स्वर्ण जड़े किसी उपहार में।
वो तो एक मुस्कान में खिलता है,
कभी दो चाय की प्यालियों में मिलता है।
प्रेम का सौंदर्य है सरल स्पर्श,
जहाँ आत्मा आत्मा को पढ़ती है।
जहाँ मौन भी संवाद रचते हैं,
जहाँ हर धड़कन कविता बनती है।
वो सौंदर्य जो थामता है गिरते वक्त,
जो देखता है थके चेहरे में भी चाँद।
जो बारिश की बूंदों में साथ भीगता है,
और धूप में परछाईं बन साथ चलता है।
प्रेम का सौंदर्य दीदार में नहीं,
पर इंतजार की उस तपिश में है।
जहाँ बिना मिले भी, कोई अपना लगता है,
और बिना कहे भी, सब कुछ सुनता है।
प्रेम सौंदर्य है...
नज़रों में नहीं,
मन की निर्मल झील में।
शब्दों में नहीं,
मौन की गहराइयों में।