रिमझिम-रिमझिम बरखा आई, ठंडी-ठंडी चले पुरवाई,
आसमान में काले बादल घड़-घड़-घड़ हैं शोर मचाते,
इंद्रधनुष के सातों रंग आसमान की शोभा बढ़ाते,
सूरज की गर्मी को हरने पानी की शीतलता लाई,
रिमझिम-रिमझिम बरखा आई, ठंडी-ठंडी चले पुरवाई,
बारिश के मौसम में हर कोई खुद को बच्चा समझता हैं,
पानी के गड्ढों में हर कोई छप-छप छप-छप करता है,
काग़ज की कस्ती लेकर हर बच्चा घर से निकलता है,
इन बचकानी हरकतों में लौट कर फिर मस्ती आई,
रिमझिम-रिमझिम बरखा आई, ठंडी-ठंडी चले पुरवाई,
इस सुहावने मौसम में दिल पंछी सा हो जाता हैं,
लहर-लहर के लहर-लहर के गीत खुशी के गाता हैं,
मेंढक की टर-टर और कोयल की कूँ-कूँ के साथ,
मोर का सुंदर नृत्य लाई,
रिमझिम-रिमझिम बरखा आई, ठंडी-ठंडी चले पुरवाई।
लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'