कब से गुजर रहे थे मुश्किलों के दौर से।
खबर भी लेते नही झिलमिलाते भोर से।।
इस तरह भूल कर चैन ना पाओगे कहीं।
डीपी मेरी बच्चे के संग ताक लो गौर से।।
मैं चाहती फिर से तुम्हारी आवाज सुनना।
उकताने लगी हूँ अब खामोशी के शोर से।।
खामियां कितनी भी गिना लेना मिलने पर।
अंदर में उथल-पुथल चल रही बड़े जोर से।।
बच्चा बच्चा नही रहा खोजे पापा बोलकर।
गुजर रही अवस्था 'उपदेश' नाजुक दौर से।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद