दोस्तो आज अपनी किसी रचना को पेश करने का मन नहीं है, ऐसा नहीं है कि रचना तैयार नहीं है, बल्कि इसलिए कि हमारी एक कवियत्री रीना कुमारी प्रजापत की मायूसी को दूर करने और उसे अपने जीवन में मिले गम, उदासी, तन्हाई और उपेक्षा को दूर करने के लिए किशोर दाॅ की आवाज में गाया गया यह पेश कर रहा हूं, आशा है कि रीना जी के साथ-साथ आपको भी पसन्द आएगा। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
आ चल के तुझे, मैं ले के चलूँ
इक ऐसे गगन के तले
जहां ग़म भी न हो, आँसू भी न हो
बस प्यार ही प्यार पले
इक ऐसे गगन के तले
सूरज की पहली किरण से
आशा का सवेरा जागे
चंदा की किरण से धुल कर,
घनघोर अंधेरा भागे
कभी धूप खिले कभी छाँव मिले
लंबी सी डगर न खले
जहां ग़म भी न हो, आँसू भी न हों
बस प्यार ही प्यार पले।
जहां दूर नज़र दौड़ आए,
आज़ाद गगन लहराये
जहां रंग-बिरंगे पंछी, आशा का
संदेशा लाएं
सपनों में पली हस्ती हो कली
जहां शाम सुहानी ढले
जहां ग़म भी न हो, आँसू भी न हो ...
सपनों के ऐसे जहां में जहां प्यार हो प्यार खिला हो
हम जा के वहाँ खो जाएँ
शिकवा ना कोई गिला हो
कहीं बैर न हो कोई गैर न हो
सब मिल के चलते चलें
जहां गम भी न हो, आँसू भी न हो...
सर्वाधिकार अधीन है