प्रेम ही प्रेम है, प्रेम जीवन का सार,
प्रेम ही संकुचन, प्रेम ही विस्तार,
भाव से भाव जुड़े, तब होता है प्यार,
रूप देख कर जो हो, वो तो है व्यापार,
प्रेम परमात्मा का रूप, सहज स्वीकार,
प्रेम ही प्रेम है, प्रेम जीवन का सार,
प्रेम ही संकुचन, प्रेम ही विस्तार ।
संसार है एक बाग, हर कली है विशेष,
बिना प्रेम के रह जाएगा क्या शेष ?
प्रेम ही कली की सुगंध, प्रेम ही प्रसार,
प्रेम ही ईश्वर, प्रेम ही सकल संसार,
प्रेम ही प्रेम है, प्रेम जीवन का सार,
प्रेम ही संकुचन, प्रेम ही विस्तार ।
🖊️सुभाष कुमार यादव