सरकारी अनुदान खा खा कर,
सरकारी फूफा हो गए।
गधों ने खाये रात भर चने,
क्या प्रभात में घोड़े हो गए।
ईमानदारी, कर्तव्य, निष्ठा,
सब को भूल गया।
याद रही तुझे बेईमानी,
ईश्वर को तू भूल गया।
धोखा दे रहे समाज को,
ये बन भ्रष्टाचारी।
नहीं करोगे इलाज,
बन जाएगी महामारी।
खौफ फैला कर,
बस्ती में रहने नहीं देता।
ये शैतान है, जीने भी नहीं देता।