ठिठुरती रात,
चाँदनी का नूर।
पूस की रात,
है दिल को भूर।
कोहरा छाया।
दूर-दूर तक,
ठंडी हवा।
सीस फटक-फटक,
आग की लपटें,
जगमगाती हुईं।
तन-मन को,
गर्माती हुईं।
बैठे हैं सब,
घरों के अंदर।
बुनते हैं,
स्वप्नों का नंदन-वंदर।
खेतों में,
खामोशी पसरी हुई।
फसलें सोई,
ओढ़े हुए कंबली।
किसान का मन,
चिंता से भरा।
फसल की चिंता ऐं!" विख्यात"
सताती रहती है दिन-रात।