"ग़ज़ल"
सौ साल पियो चाहे तुम जाम ज़िंदगी के!
होंगे ख़त्म नहीं कभी काम ज़िंदगी के!!
ग़ुर्बत में जो जिया हो उस को क्या पता!
होते हैं क्या ऐश-ओ-आराम ज़िंदगी के!!
मौत ने आ कर उसे गले से क्या लगाया!
मिट गए गिले-शिकवे तमाम ज़िंदगी के!!
अपनी अना का ख़ून अपने हाथों से कर के!
बन जाते हैं कुछ लोग ग़ुलाम ज़िंदगी के!!
'परवेज़' ये किसी की हुई ही नहीं कि होगी!
चाहे ज़िंदगी ही कर दो नाम ज़िंदगी के!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad