उनकी खामोशी अब तो, दिल को अखरने लगी..
ये तन्हा शाम भी, फिर से सरगोशियां करने लगी..।
हम चलते रहे, बिना मंज़िल का निशाँ तय किए..
दर्द इस कदर उतरा, कि नीली नसें उभरने लगी..।
हमने बड़ी करीने से समेटी थीं सब खुशियां अपनी..
ये बे–मुरव्वत खुद–ब–खुद ही क्यूँ, बिखरने लगी..।
एक वक्त के बाद, जब सब कुछ भूलने लगा हूं मैं..
कुछ यादें क्यूं फिर से, ज़ेहन में आकर ठहरने लगीं..।
उनकी बे–रुखी, हमें बहुत ज्यादा बदल न सकी..
उनके कदमों की राह, फिर दिल से गुज़रने लगी..।
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




