सदा श्रृंगार करता देख मुझे वीरता का,
मेरे हृदय की हुंकार जगी
उठा लो अपनी भुजाओं को, उमंग को मुट्ठी में बांध लो
चलो वीरता के पथ पर, पराक्रम अपना दिखा दो
धरती की चित्कार सुन, आसक्ति तेरी छूट जाएगी
सदा अनल बनकर,उठे थे उस ममता के हृदय से
आज बारी आयी जीवन में, सहर्ष स्वीकार लो
उत्साह के स्वरूप उपहार मिला है, साकार होता विश्वास मिला है
जब तक न खेलेंगे इस धूलि में, समर्पण कहां से मिलेगा
ये आकाश का सीना चीरकर,जलधर का जल निकाल लो
जब देखोगे इस अशांत मृत्यु को, तो मन में एक नया जीवन उत्पन्न होगा,
जब फूटेंगे अंकुरण जोश के तो, हृदय में फूलों का एक गुलशन होगा
जब बहेगा लहू इस वीर का तो,
पराक्रम का सूर्योदय होगा।।