जब खोली किताब मैने अपने सपनों की तो पाया,
पन्ने मेरे थे,
लिखावट किसी और की थी शायद।
ढूंढा कि,
उसमें लिखे पन्नों पर कितनी जगह मैरी है?
और कितनी उन लोगों की ,
जिन्होंने बताया कि मेरा सपना दिखता कैसा है?
हर पन्ना मुझसे पूछ रहा था,
तुम लेखक हो या बस पाठक?
उन कुछ पन्नों में,
कहीं माँ-बाप की इच्छाएँ ,
उतरी हुई थी,
कहीं समाज के फ़रमान
गूंज रहे थे,
कहीं दुनिया का झूठा गौरव,
पसरा हुआ था,
और कही खुद का ही डर
दिख रह था।
और कहां मैं सोचती रही,
क्या यही मेरी पहचान है?
ये किताब तो मेरी कम ,
और उन बेड़ियों की लिखी हुई ज्यादा है।
निराशा हुई ।
पर एक कोने में,
धुंधला-सा अक्षर चमक रहा था।
वो मेरा सपना था,
मेरा अपना
जिसे मैंने अपने आँसुओं की स्याही से लिखा था।
छोटा था,
पर उसने ही मुझे थामे रखा,
वही पहला सच है ,
मेरी रूह का।
मैं जानती हूँ,
हर सपना अपना नहीं होता।
कुछ बेड़ियाँ हैं,
कुछ बोझ हैं,
पर जो सपना हमें गढ़ दे,
जो हमें भीतर से आकार दे,
वो ही असली किताब है।
दुनिया नक़्शा खींच सकती है,
पर मेरी रूह की आकृति
सिर्फ़ मेरे सपनों से बनती है।
मैं अपने सपनों से बंधी रहती हूँ,
क्योंकि वही मुझे आज़ाद करते हैं।
वही सिखाते हैं
कि जीना भी एक हुनर है,
और हारना भी।
हिम्मत की स्याही से,
मैने
अपना पहला पन्ना लिखा है।
जो मेरा अपना है।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




