ऐ दिल मेरे तू बोल मैं कविता पे कविता क्या लिखूँ
तुमसे प्यारा तुमसे बेहतर तुम से अच्छा क्या लिखूँ
आती थी तुमको देख कर चेहरे पर सबके रौनक़ें
इससे ज़ियादा और मैं मौसम सुहाना क्या लिखूँ
दीये जलाना प्यार के पूजा समझना काम को
तेरी चमक में चाँद तारों का उजाला क्या लिखूँ
ये घूमते फिरते परिन्दे या सितारे अर्श के
कह दें मुझे आकर तिरे ख़्वाबों से ऊँचा क्या लिखूँ
है आँख नम भीगी फ़ज़ा ग़मगीन आलम बिन तिरे
ये वादियां क्या गा रही तेरा फ़साना क्या लिखूँ
क्या थी शफ़क़ जादू ही था क्या ख़ूबसूरत थी अदा
इस दश्त में तुम ही तो थे मेरा ख़जाना क्या लिखूँ
ख़ुद ही चले आना कभी हालात मेरे जानने
इस बेख़ुदी में चल रहा है वक़्त कैसा क्या लिखूँ
कवि - श्री सुरेश सांगवान (सरु)