जब रक़म बाप से ना जुटाई गई,
एक दुल्हन यहाँ फिर जलाई गई।
बेच ग़ैरत दिया खुश रहे लाडली,
द्वार से पालकी तब उठाई गई।
कुछ दिनों बाद आने लगी माँग फिर,
माँग उनसे नहीं फिर चुकाई गई।
यातना सह रही घर में बेटी वहाँ,
फोन पर यह ख़बर भी बताई गई।
लाख कोशिश किया न्याय पर न मिला,
घूस देकर के फाइल दबाई गई।
बेचकर घर-मकां ब्याह तो कर दिया,
अब तो बेटी गई और कमाई गई।
कवि - श्री पंकज पाण्डेय