निस्वार्थ भाव से
डॉ. एच सी विपिन कुमार जैन विख्यात
निश्चल मन का अनुराग ही पूजा है,
निस्वार्थ भाव से जो हृदय उपजा है।
जो जोड़ दे दिल को किसी और के दिल से,
बिन कहे ही खोल दे मन के हर तिल से।
दूसरों के आँसू में अपनी नमी देखे,
उनकी पीड़ा में अपनी ही कमी देखे।
सिर्फ मानव नहीं, हर जीव की सुने पुकार,
प्रेम की कोई सरहद नहीं, न कोई दीवार।
यह भाषा से परे, सीमाओं से आज़ाद,
हर धड़कन में गूंजती मधुर आवाज़।
यही तो है प्रेम, जो बंधन भी है और मुक्ति भी,
यही सच्ची अर्चना, यही जीवन की युक्ति भी।
हर करुणा भरा स्पर्श, हर सहानुभूति की नज़र,
प्रेम की ही अभिव्यक्ति, प्रेम ही है असर।
आओ करें इस पूजा में अपना जीवन अर्पण,
प्रेम से ही सुंदर होगा यह सारा दर्पण।