तेरी मेरी खुशियों के, क्यूं पैमाने अलग हैं..
अपने होकर भी क्यूं, ये ज़माने अलग हैं..।
आसमां की ऊंचाइयां तो अब भी वही हैं..
मगर पंछी अब तेरी, क्यूं उड़ाने अलग हैं..।
तेरे मिलने में, अब वो कशिश बाकी नहीं..
तू तो वहीं है, मगर क्यूं तेरे बहाने अलग हैं..।
मेरी बात पर आप, कुछ गौर फरमाइयेगा..
आप सोचते हो, उससे मेरे अफसाने अलग हैं..।
इन दिनों वो संभाले से भी, संभलते नहीं है..
अब साकी अलग है या कि, मयखाने अलग हैं..।
पवन कुमार "क्षितिज"