निराशा
डॉ.एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
धन का न होना नहीं है
निर्धनता,
ये तो है मन की अतृप्त पिपासा।
जितनी बढ़ाओ तुम अपनी कामनाएँ,
उतनी ही गहरी होगी ये निराशा।
जो मिला है, उसका न करो तुम आदर,
हरदम नए की करते रहो तुम सादर।
ये अंतर का कंगालपन है जानो,
कभी न भरेगा, कितना भी मानो।
पैसा तो आता, चला भी है जाता,
मगर ये लालच कभी नहीं सोता।
एक ख़्वाहिश पूरी, दूजी है तैयार,
कभी न मिलेगा मन को ये करार।
अपनी इच्छाओं पर लगाओ लगाम,
सादगी के जीवन में पाओ आराम।
जो है तुम्हारे पास, उसमें रहो प्रसन्न,
तभी मिटेगा ये दरिद्र मन का प्रश्न।
निर्धनता नहीं धन के अभाव में,
ये पलती है बस असीमित चाव में।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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