सोचती हूँ,
लाडो जब तुम बड़ी हो जाओगी।
अपने आँचल में तुम्हें कैसे छुपा पाऊँगी मैं,
लाडो जब तुम घर से बाहर जाओगी,
ज़माने के निष्ठुर दरिंदों से तुम्हें कैसे बचा पाऊँगी मैं।
जाने वो सुबह कब आएगी,
जब खिलखिलाकर तुम हँसोगी,
पुष्प बनने से ही पहले तुम न कुचली जाओगी।
काश इस धरा का हर मानव राम बन जाए,
उसको हर नारी में अपनी माता नज़र आए।
तब खुली हवा में साँस ले पाओगी तुम,
तब निर्भय हो तुम जी सकोगी,
पंख मिल जाएँगे तुमको,
स्वच्छंद विचरण कर सकोगी।
तुमको भी मिल जाएगी अपनी धरा और आसमाँ,
मैं भी सुकून से रह सकूँगी,
मैं भी सुकून से सो सकूँगी।
— सरिता पाठक
( मौलिक रचना )


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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