कापीराइट गजल
नींद कहां आई हम को यादों की शहनाई में
डोल रहा मन का पंछी यादों की गहराई में
नींद लिए आंखों में, जैसे सदियां गुजर गई
जाग उठे ख्वाब मेरे यादों की अंगड़ाई में
बीती हैं मेरी रातें संग चंदा और सितारों के
ढूंढ रहा था जैसे कोई पलकों की परछाई में
याद कहां रहता ये नींद घुली थी आंखों में
आंख मिचौनी जब खेले मेरे संग तन्हाई में
तरस रही थी कब से यादव आंखें ये सोने को
उड़ जाती है नींद मेरी रह रह कर तन्हाई में
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
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