"शे'र"
न फ़लक न ज़मीं न आग न पानी न हवा!
तिरी इक नज़र है मिरे मर्ज़-ए-मोहब्बत की दवा!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad
"श'र"
ऐ मिरे अजनबी! मिरे ग़ैर! मिरे कोई नहीं!
रात भर ऑंखें तिरी याद में हैं सोई नहीं!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad
"शे'र"
तिरी ऑंखों में डूब जाऊॅं कि दिल में उतर के देखूॅं!
तिरी चाहत में ज़िंदा हैं सभी मैं क्यूॅं न मर के देखूॅं!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad
"शे'र"
अपने हाथों से खींची हैं इन हाथों पे लकीरें!
क़िस्मत के भरोसे बैठने वालों में हम नहीं!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad