तेरे क़दमों में रख दूँ साँसें? — ये भ्रम था, अब दंड हूँ,
मैं ना परछाईं किसी की, मैं पूर्ण हूँ, मैं अखंड हूँ।
तू जो कहे वो सच मानूँ? — वो दिन गए, अब मौन नहीं,
मेरी हर चुप्पी में ज्वाला है, मैं ज्वालामुखी की तटबंध हूँ।
तेरा इश्क़ अगर बंधन है, तो शुक्र है कि टूटा वो,
अब जो बंधूँ, बस ख़ुद से बंधूँ, यही मेरा अनुबंध हूँ।
तू सत्ता बनकर बैठा था, मेरी इच्छा के विरुद्ध सदा,
अब चेत जा — मैं मौन नहीं, मैं युद्ध नहीं — प्रचंड हूँ।
मैं झुकी नहीं, मैं रुकी नहीं, मैं जलती रही एक राख तले,
अब आग बनी हूँ चेतन की, मैं मृत्यु नहीं, मैं चंड हूँ।
तेरा प्रेम अगर आदेश है, तो मैं उसे अस्वीकार करती हूँ,
अब जो प्रेम करूँ, वो मुक्त हो — मैं नियम नहीं, आनंद हूँ।
तू सोचता है हार गई मैं, कि नहीं रही अब पास तेरे,
सुन, मेरी अनुपस्थिति ही तो है —
तेरे वजूद का निर्बंध हूँ।