सुलगते शहरों की दास्तां, पानी की कलम से लिखूं..
ए इन्साँ कब तक तेरी, नादानी की कलम से लिखूं..।
इस दुनिया में कुछ हक़ीक़त, आई ना नज़र हमको..
अब इसे क्या ज़िंदगी–ए–फ़ानी की कलम से लिखूं..।
माना कि तेरे दामन में सुलग रही है, आग ज़माने की..
आ तेरा दर्द आज, खुश–बयानी की कलम से लिखूं..।
तेरी रातों के अफसाने, अब भी है ख्यालों में मगर..
दिल के कहने से कैसे, बदगुमानी की कलम से लिखूं..।
तेरे एहसानों के इश्तिहार, हर गली में लगाए हैं हमने..
क्यूँ न ज़िंदगी तेरे नाम, मेहरबानी की कलम से लिखूं..।
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




