वाह रे ज़िन्दगी
धरा पर कदम क्या रखा
ज़िम्मेदारियों ने बाँध लिया
बच्चे के पहला कदम रखते ही उसके
बोलने ,चलना सीखने की ज़िम्मेदारी शुरू
बड़ा हुआ तो
पढ़ना,खेलना,तहज़ीब सीखने की शुरुआत हुई
फिर थोड़ा और बड़ा हुआ
समाज में कुछ कर दिखाने की ज़िम्मेदारी का बोझ शुरू
युवा हुआ तो
घर-परिवार की ज़िम्मेदारियों ने बाँध लिया
बुढ़ापे की देहरी आई
तो सेहत ने साथ जो छोड़ा ,आख़िरी साँस के इंतज़ार की ज़िम्मेदारी ने घेरा
वाह रे ज़िन्दगी!
ज़िम्मेदारियों में भी बाँधे रखा और कौतुक भी हमारा ही बनाया..
वन्दना सूद