हाँ थोड़ा सोच रहें थे कि,
उनसे मिलना हो जाए,
उसमें भी इतना सा सोच रहे थे कि,
थोड़ी बात हो जाए,
फिर यूं सोच रहे थे कि,
थोड़ी ओर बात हो जाए,
उसमें ही थोड़ा सोच रहे थे,
उनसे रिश्ता मिलनसार हो जाए,
बहरहाल,
हम आँखों में बंद थे,
जो कुछ सोच रहे थे,
वो तो किसी रूपसंवार रही दुकानों में,
कहीं से सज रही होगी।।
- ललित दाधीच।।