Nari jab chalti Hai.
नारी जब चलती है
Lalit Dadhich
नारी जब चलती है,
वो आकाश से उतरी है,
उषा के मृदु भावों में,
तेज आलोक की छांव में,
पेड़ के नीचे नरम होकर,
प्रसूनों के परागों में खुशबू बनकर,
भंवरे का धैर्य बनकर,
घासों की ओस में,
सरिता के किनारे, बूंदों की गोद में,
बरसती है मेघों की कोंपलों से।
नारी जब चलती है,
वो हृदय में उतरी है,
प्रेम के सौम्य समन्वयशाली रोम रोम से,
अनगिनत श्रृंखलाओं की कड़ियों से,
छोटे-छोटे उथले-पुथले ग्रहण चंद्रमा की चांदनी,
जिस पर काले रंग का रेशेदार कपड़ा ओढ़ा है,
तारे चमके और तेजतर्रार चेहरा चमक से,
नृत्य के आलिंगन से,
कंठ का रूप है,
हाथों की हिना से, हवा का रुख बदला है।
नारी जब चलती है,
वो ज्ञान में उतरी है,
कंठ धारणी, सुर धारिणी , श्वेत कमला,
वीणा के सात सुरों से,
बुद्धि का परिष्कृत संयोजन,
वैभव कला संपन्न श्रृंगार सरोवर,
पायल के उठते गिरते सुरों से,
एक नया संगीत,
मन के द्वारों पर एकटक निहार,
थोड़ा लाज के कारण,
नजरों में काजलिया,
श्याम के नेत्रों तक पहुंच रही है।
नारी जब चलती है,
राधा की आंतरिक वेदना में उतरी है,
मीरा का वियोग और गंगा यमुना सरस्वती की धारा से अपना वैराग्य मोह,
किसी अज्ञात ब्रह्म तक पहुंचा रही।
नारी चेहरा ना हो कर,
उसकी अमुक भाव संपन्नता,
अंतर्द्वंदों के प्रफुल्लित रसों की पराकाष्ठा है,
एक एक कोशिका का मिलना जुड़ना सृजित होना नष्ट होना
नारी की धैर्य परिभाषा है।
नारी धीरे से कहती है,
पर सही कहती है,
नारी धीरे से चलती है,
पर लक्ष्य तक चलती है,
नारी धीरे से हंसती है,
पर हृदय तक हंसती है,
नारी धीरे से समझती है,
पर अनादि काल सब समझती है,
नारी एक भाव में अनेक सूक्ष्म भाव की जटिल संरचना है,
नारी का विद्रोह विरोधी ना होकर प्रेम के अधीन है,
नारी का विवेक एक स्थायी पटल है,
जिस पर ये संसार अपने पैर रख सकता है,
नारी समझी नहीं जा सकती,
नारी तक उतरना होगा,
नारी तक पहुंचना होगा,
नारी में समाना होगा,
नारी तक जाना होगा,
नारी पर शब्दभेदी बाण कम चलते हैं,
भाव भेदी बाण बनाना होगा।
नारी जब चलती है,
एक युग की कहानी बदलती है,
नारी पूजा तुम्हारी,
नारी के इर्द-गिर्द है दुनिया सारी,
केंद्रीय भूमिका तुम्हारी,
मनोवृति बदलनी होगी हमारी,
नारी सब पर भारी,
नारी जब चलती है,
नारी जब चलती है।
तब दुनिया बदलती है।।
- ललित दाधीच