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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

सड़कों पर भटकता देश का भविष्य

मैं दिल्ली किसान आंदोलन के समर्थन में शाहजहांपुर बॉर्डर पर था वहां पर हम लगभग 5 हजार किसान थे और बड़ा मोर्चा लगा हुआ था तभी वहां देखा की कुछ छोटे बच्चे पानी की खाली बोतलें इकठ्ठी कर रहे थे ! उस दौरान मैंने उन बच्चों से बातें करनी चाही।
मैनें पूछा की आपका नाम क्या है।
बच्चा : रमेश
कितने साल के हो
रमेश: 10 साल का हूं।
तो तुम पढ़ते नहीं हो क्या??
रमेश: नहीं!
तो आप यह बोतलें क्यों इकट्ठी करते हो?
रमेश: हम यह बोतलें इकट्ठी करके सेठ को देते है वो हमें एक थैले के 20 रुपए देते हैं जिससे हम खाना खाते हैं।
मैंने पूछा की आप चारों कितने थैले इकट्ठे कर लेते हो एक दिन में
रमेश: एक दिन में 8-9 थैले इकट्ठे कर पाते हैं। अभी यहां पर भीड़ है तो थोड़ी ज्यादा हो जाती है।
मैने पूछा की तुम्हारे माता पिता क्या करते है।
रमेश: मेरे पिता जी नहीं है, मम्मी भी यही काम करती है। दो बहने है वो भी मेरे साथ ही है यहां पर
मैं सोचता रहा की कितने अभाव में यह लोग अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
मैने वहां बोतलें इकट्ठी करने वाले मासूम बच्चों को खाना खिलाया और बोला की जितने दिन यह मोर्चा यहां लगा रहता है तुम रोज यहां खाना खा सकते हो। उन बच्चों के चेहरे पर मुस्कराहट देख कर मैं भी बहुत खुश हुआ लेकिन मेरा मन अंदर ही अंदर अपनी इन व्यवस्थाओं को कोस रहा था की सत्तर साल से ज्यादा समय हो गया है आजादी मिले को देश के हुक्मरानों ने तब से लेकर आज तक इनकी और आँख उठाकर भी नहीं देखा सब के सब अपनी रोटियां सेकने मे लगे रहे समय समय पर जन भावनाओं को लुभाने के लिए सरकारें योजनाओं के रूप मे घोषणाएं करती रहीं हैं और उधर से पूंजीपतियों के इशारे पर इनके हक और अधिकारों को निगलती रहीं है! इस मामले में किसी ने कोई एक्शन नहीं लिया आज भी मेरे देश का भविष्य सड़कों पर अपने वजूद का रोना रोने को मजबूर है ! आखिर इन्हें सड़कों पर भटकते देख देश के सफेदपोश नेता लोग चैन से कैसे सो लेते हैं! उनका जमीर क्यों नहीं फट जाता ?




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