कड़कती धूप में छाव सी लगती हे
चमकते शहर मैं वो गांव सी लगती है
खुरदुरी सी मिट्टी पर ओस कि बूंद सी
सूने से खेतो में,जैसे लहलहाती सी
उगते सूरज की वो किरणों सी निकलती हे
बहती हुई लहरों सी मन में उलझती सी
उठी हो नीद से अभी अभी कोई कलि
चलती है वो जिस रास्ते से लहराती हुई
आंगन में जैसे बरसती हो बदली
नन्ही सी बिटिया , किलकती हुई
साक्षी__लोधी