जिंदगी गुजर रही गफलतों में लंबी चादर तान कर
मौत दस्तक दे देती हैं हुक्म ए ईलाही मान कर।
खेले बहुत आंख मिचौली मौत के आहटों से,
वक्त गुजरता गया मौत है नामुमकिन मान कर।
हमारे सांसों के सहारे है तलवार बन लटकी हुई
करें तैयारी कब्र की जाए पनाह मान कर ।
खुश है रियाया बहुत बादशाह सलामत से आज
बंट रहा हराम माल तोहफा ए इंतखाब मान कर।
कुछ दिनों की है चांदनी हर किसी को मालूम है
पाबंदी है सच बोलने की सच के नाम पर।