मुस्तकिल सा गम कोई जब भी ठिकाना ढूंढ़ते हैं
दिल कोई बेबस बेचारा वह शायराना ढूंढ़ते हैं
निगाहेँ जब बदल जाती हैं किसी की बेवफाई में
दूर जाने का सनम एक खुद ही बहाना ढूंढ़ते हैं
अब सितारों में कहाँ मिलती है चमक पहली सी
ख़ुदकुशी गिरके फलक से आशियाना ढूंढ़ते हैं
रूठ गई है जब ये खुद तकदीर ही अपने आप से
हम हाथ की लकीरों में लिखा निशाना ढूंढ़ते हैं
दास दुनियां में ईमान की बहुत कदर है हमेशा
लोग लेकिन फरेब में ही शामियाना ढूंढ़ते हैं ||