(ग़ज़ल)
मुस्कुराना चाहता हूँ
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जिन्दगी भर मुस्कुराना चाहता हूँ ।
फूल को दिल में खिलाना चाहता हूँ ।।
नफ़रतों की नागफनियों को हटाकर,
प्यार के पौधे उगाना चाहता हूँ ।।
द्वेष, दहशत, ईर्ष्या की बेल को मैं,
अब नहीं ऊपर बढ़ाना चाहता हूँ ।
इश्क़ देवी की इबादत कर चुका, अब
देश पर खुद को मिटाना चाहता हूँ।
पंछियों के घोसलों को कर सुरक्षित,
गीत निर्भयता के गाना चाहता हूँ ।
डर चुका हूँ घुप्प अंधेरों से बहुत ,
दीप साहस का जलाना चाहता हूँ ।
गाड़ कर झंडा हमेशा जीत का ही,
जश्न जीवन में मनाना चाहता हूँ ।
खट रहा हूँ नित सुबह से शाम तक मैं,
पेट की ज्वाला बुझाना चाहता हूँ।
मुस्कुराता हूँ सभी के सामने बस,
दर्द को अपने छिपाना चाहता हूँ ।
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~राम नरेश 'उज्ज्वल'