कुछ तो बात है मैख़ाने में,
वर्ना यहाँ प्यासे क्यूँ मिलते !!
चैन अगर ना मिलता यहाँ पे,
तो इतने बेचैन ना मिलते !!
मत कहना कि शराब बुरी है,
फिर यहाँ सच्चे लोग क्यूँ मिलते !!
दुनिया से ठुकराये सभी फिर,
एक जगह पर यूँ ना मिलते !!
कौन यहाँ पूरा जिन्दा है,
कोई अध्धी तो पव्वा है !!
तनहाई ने पी करके फिर,
छोड़ा खाली बोतल जैसे !!
कोई ग़म का हल ढूँढता है,
कोई खुद हल्का होता है !!
ठीक यहाँ बोतल की तरह ही,
इनसाँ सारे पैग में मिलते !!
- वेदव्यास मिश्र की दार्शनिक कलम से
सर्वाधिकार अधीन है