दिल में जरा भी मैल अगर आ जाता है
ऊँचे से ऊँचा घराना भी बिखर जाता है
जितना ज्यादा तपता है भट्ठी में सोना
रंग उसका और ज्यादा निखर जाता है
मिलेगा फरेब जब अपने ही अजीज से
हरेक इंसान टूटके खुद बिखर जाता है
जिसके दम से यह कायनात है कायम
कब कोई कहां उसका शुकर मनाता है
मेरा दिल भी दास बच्चे जैसा हो गया है
रूठता है बेसबब और खुद मान जाता है।